मन के आँगन हरसिंगार

  मन के आँगन हरसिंगार कवि : प्रवीण पारीक 'अंशु'

पुस्तक समीक्षा :
समीक्ष्य कृति :  मन के आँगन हरसिंगार
कवि : प्रवीण पारीक 'अंशु'
प्रकाशन : आनन्द कला मंच प्रकाशन, भिवानी
प्रथम संस्करण : 2024
पृष्ठ संख्या : 120    मूल्य रुपए : 300 /-

सामयिक युगबोध की प्रभविष्णु लघुकविताएँ

साहित्य-जगत में ग़ज़लकार के रूप में विख्यात युवा साहित्यकार प्रवीण पारीक 'अंशु' की छठवीं पुस्तक  लघुकविता-संग्रह 'मन के आँगन हरसिंगार' प्राप्त हुई।आलोच्य कृति में एक से बढ़कर एक कुल 101 लघुकविताएँ संगृहीत हैं। ये प्रेम, प्रकृति, देशभक्ति,  मातृभाषा, त्योहार, राजनीति, भ्रष्टाचार,शिक्षित बेरोजगारी, भुखमरी,आम आदमी के जीवन संघर्ष आदि अनेक विषयों को केंद्र में रखकर सृजित की गई है।

संग्रह में इनकी प्रेमपरक अनेक कविताएँ हैं।यथा-" सात्विक प्रेम, प्रेम की उष्णता, गुनगुना एहसास व प्रेम की कविताएँ आदि। इनमें लौकिक एवं अलौकिक दोनों प्रकार के प्रेम का निरूपण हुआ है। 'सात्विक प्रेम' कविता में कवि ने कृष्ण और गोपियों के माध्यम से सात्विक प्रेम के स्वरूप को अभिव्यक्त किया है तथा 'प्रेम की कविताएँ'' शीर्षक लघुकविता में प्रेम के एक अलग स्वरूप को महसूस किया जा सकता है-" प्रेम की भूमि पर उगी कविताएँ/ सिर्फ कविताएँ नहीं होती/ वह होती हैं/ मानो प्रेमीका के हाथ से/ लिखे गए खूबसूरत ख़त/जिन्हें बार-बार पढ़ने को मन करता है/ और हर बार/ हृदय भर जाता है/प्रेम के/ सोंधे एहसास से---।"पृष्ठ-37. लघुकविता में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर प्रयोग स्पष्ट रूप से परिलक्षित है।

इसी प्रकार प्रकृति विषय पर प्रकृति के विविध रूपों पर भी अनेक कविताएँ संगृहीत हैं।यथा- "प्रकृति एक कविता,
बहती हुई नदी, नभ के नीले आँगन में,हे!दिनकर, प्रकाशवान सूर्य, प्रकृति की पुकार,धुंध, पानी, निराले पंछी, प्रकृति का उत्सव आदि। इनमें प्रकृति का मानवीकरण कर उसे अलंकृत रूप में प्रस्तुत किया है तथा प्रकृति के माध्यम से मानव को प्रेरक सन्देश भी प्रदान किए हैं जो अत्यंत श्लाघनीय हैं। 'नभ के नीले आँगन में' का एक दृश्य उल्लेखनीय है- " आसमान में/बहुत रौब है/ अपने चंदा मामा का/ जब निकलते हैं ये/अपनी पूरी चमक-दमक के साथ/ नभ के नीले आँगन में/तो सारे तारे/ शरारती बच्चों की तरह/ छिप कर बैठ जाते हैं/ न जाने किस कोने में---।"पृष्ठ-52. प्रस्तुत लघुकविता में प्राकृतिक सत्य को उपमा अलंकार के माध्यम से बहुत आकर्षक तरीके से सम्प्रेषित किया है, जो क़ाबिले तारीफ़ है।

'प्रकृति का उत्सव' लघुकविता की एक झलक प्रस्तुत है-
" यह बादलों से आच्छादित आकाश/छम-छम नाचती/ ये बारिश की बूँदें/ भला किसके मन को आह्लादित नहीं करतीं/ बच्चे, बूढ़े,जवान/ जानवर, पशु,पक्षी, कीट-पतंगे/ सभी तो शामिल होते हैं/आनंद-मग्न होकर/ प्रकृति के इस उत्सव में--।" पृष्ठ-97.

कवि की संवेदना का दायरा प्रेम व प्रकृति तक ही सीमित नहीं है, वह आम आदमी के जीवन संघर्ष को भी बड़ी शिद्दत से रेखांकित करता है-  'खा जाती है रोटियाँ उसे ही'
- "पत्थर तोड़ते-तोड़ते टूट गई है उसकी कमर/ एक हो गए हैं पेट और पीठ/देह के नाम पर नज़र आता है/ तो केवल
हड्डियों का एक ढाँचा/ पेट की भूख मिटाने के लिए/ क्या कुछ नहीं करना पड़ता/ एक गरीब को/ रोटियों के लिए इतनी त्रासदी झेलता है वो/ कि एक दिन/रोटियाँ उसे ही खा जाती हैं।" पृष्ठ-115.

'मुँह चिढ़ाता डस्टबिन'-" एक शादी के टैंट में/आलीशान दावत चल रही है/इधर टैंट से बाहर खड़े  एक गरीब की/ भूख से जान निकल रही है/ मिठाई और पकवानों से/ आधी भरी हुई थालियाँ/ डस्टबिन में फेंकी जा रही हैं/मानो उस भूखे ग़रीब का/मुँह चिढ़ा रही हों--।" पृष्ठ-94. अन्न की बर्बादी मानो भूखे ग़रीब को चिढ़ाना है। कवि का प्रिय अलंकार उत्प्रेक्षा व सुबोध भाषा का स्वाभाविक प्रयोग दर्शनीय है।

कृति में 'तीसरा व्यक्ति' बाबाओं पर कटाक्ष और 'दो दिन की देश भक्ति' में दिखावे की देश भक्ति पर जबरदस्त व्यंग्य किया गया है। तथा 'तुम्हारा ये मोबाइल' लघुकविता में मोबाइल को पिस्टल से कम नहीं बताया गया है। यथा-
" बर्बाद कर दिया इसने/ किताबों को/ पढ़ाई-लिखाई को/ स्वास्थ्य को/ खून कर दिया इसने/ संबंधों और रिश्ते-नातों का/ भावनाओं और आस्थाओं का/ नैतिक मूल्यों का/ तुम्हारा यह मोबाइल/ किसी पिस्टल से कम तो नहीं- ।"
लघुकविता में 'खून कर देना' जैसे प्रसिद्ध मुहावरे का भी सफल प्रयोग हुआ है। भाव व शिल्प की दृष्टि से ये सभी लघुकविताएँ लाज़वाब हैं। इन्हें पढ़ कर पाठकों की भाव- चेतना उद्वेलित हुए बिना नहीं रह सकती,यही कवि के सृजन- कर्म की सफलता का परिचायक है।

इनके अतिरिक्त ' जिंदगी इतनी बुरी भी नहीं, दुनिया एक दर्पण, मकान से मंदिर तक, अटूट रिश्ता, सूखा गुलाब, पुष्प का रहस्योद्घाटन,अतुलनीय माँ, बच्चे,ये दुनिया,आई तीज सुहानी,रक्षाबंधन,स्वर्ग कहाँ आदि लघुकविताएँ सकारात्मक सोच एवं गहन भाव संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। इनमें मानवीय मूल्यों एवं लोक जीवन की सच्चाई के दर्शन होते हैं। तथा प्लास्टिक,मरती हुई इंसानियत, भ्रष्टाचार की जड़ें, टूट गई अभिलाषाएं, रिटायर हुआ आदमी आदि लघुकविताएँ यथार्थ बोध,सामयिक समस्या,गिरते मानवीय मूल्य एवं शिक्षित बेरोजगारी आदि की ज्वलंत समस्याओं को रेखांकित करती हैं और 'मन के आँगन हरसिंगार' में कवि ने कटुता, द्वेष,घृणा वैमनस्य की दीवार गिरने व प्रेम,स्नेह और मुस्कान के हरसिंगार मन के आँगन में खिलने की पुरजोर कामना प्रभु से की है। कवि ने इसी कविता को आधार बना कर कृति का नामकरण 'मन के आँगन हरसिंगार' रखा है, जो कि औचित्यपूर्ण एवं सर्वथा समीचीन है।

सारांशतः कहा जा सकता है कि प्रवीण पारीक 'अंशु' कृत
मन के आँगन हरसिंगार' भाव सौंदर्य,शिल्प सौष्ठव, शीर्षक व सन्देश की दृष्टि से अनुपम काव्य कृति है, पठनीय और संग्रहणीय है। हार्दिक शुभकामनाओं सहित।


- डॉ. ज्ञानप्रकाश 'पीयूष' ,आर.ई.एस.
पूर्व प्रिंसिपल,
साहित्यकार एवं समालोचक
# 1/258,मस्जिदवाली गली,तेलियान मोहल्ला,
नजदीक सदर बाजार ,सिरसा -125055(हरि.)
संपर्क--094145-37902, 070155-43276

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