मंगलवार, 20 फरवरी, 2024 शाम सात बजे आवाज़ के जादूगर कहे जाने वाले अमीन सयानी साहब का 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। जिन्होंने एक बार भी रेडियो पर अमीन सयानी साहब की आवाज़ सुनी है, उन्हें याद होगा कि ‘‘नमस्कार, बहनो और भाइयों, मैं आपका दोस्त अमीन सयानी बोल रहा हूँ’’ कहकर उद्घोषक के रूप में अपना परिचय देने का उनका अपना ही एक अलग अंदाज़ था। अपनी आवाज़ में सैंकड़ों नहीं, बल्कि हज़ारों प्रसारण देने वाले अमीन सयानी साहब की आवाज़ में अब हमें नया कुछ भी सुनने को नहीं मिलेगा। आवाज़ का जादूगर अपनी आवाज़ का जादू दिखाकर इस दुनिया से चला गया है।, किन्तु रिकाॅर्डिड आवाज़ के ख़ज़ाने में उनकी जो आवाज़ हमारे पास है, अथवा हमारे ज़ेहन में उनकी जो आवाज़ रह-रह कर गूंज रही है, उसके माध्यम से वह हमेशा ज़िन्दा रहेंगे। जब भी कभी किसी खास अंदाज़ में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले उद्घोषक का ज़िक्र चलेगा उनका नाम सबसे पहले आएगा।
कहने की आवश्यकता नहीं कि आवाज़ की दुनिया में अमीन सयानी साहब के सफ़र की एक लम्बी कहानी एवं रोचक कहानी है, जो उनके परिवार से ही शुरू होती है। इनका परिवार मुम्बई में रहता था। पिता जान महोम्मद पेशे से डाॅक्टर थे। माँ कुलसुम सयानी एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। अमीन सयानी का जन्म 21 दिसम्बर सन् 1932 को हुआ। सयानी साहब तीन भाई थे, बहन कोई नहीं थी। सयानी साहब के बड़े भाई हमीद सयानी रेडियो में अंग्रेज़ी के मशहूर उद्घोषक थे, जो इन्हें बचपन में पहली बार रेडियो पर अपने साथ ले गए थे और अंग्रेज़ी कार्यक्रमों से रेडियो पर इनकी शुरूआत करवाई थी।
अमीन सयानी साहब ने 8 वर्ष की उम्र में बम्बई आकाशवाणी केन्द्र पर बाल-कलाकर के रूप में भाग लिया था। बाद में यह इस केन्द्र से बतौर अंग्रेज़ी उद्घोषक जुड़े और लगभग दस साल तक अंग्रेज़ी के उद्घोषक रहे और बाद में हिन्दी उद्घोषक बने। अपने इंटरव्यु में इन्होंने बार-बार कहा है कि इन्हें रेडियो पर लाने में ही नहीं, बल्कि इनकी आवाज़ को बनाने अर्थात उसमें निखार लाने में भी इनके बड़े भाई हमीद सयानी का बहुत बड़ा हाथ रहा है। वह इनके रेडियो-गुरु थे।
बड़ा रोचक किस्सा है कि आवाज़ में गुजराती लहज़ा होने के कारण अमीन सयानी जी रेडियो पर हिन्दी प्रसारणों में भाग लेने के लिए दिए गए आॅडिशन में असफल हो गए थे और बाद में जब हिन्दी के सफल उद्घोषक ही नहीं बल्कि रेडियो के लिए हिन्दी आवाज़ के विशेषज्ञ बने तो इन्होंने आज के हिन्दी सिनेमा के शहनशाह अमिताभ बच्चन साहब को उनके शुरूआती दिनों में उस वक़्त रेडियो के लिए रिजेक्ट कर दिया था, जब वह बतौर हिन्दी उद्घोषक आॅडिशन देने रेडियो पर पहुँचे थे और अमीन सयानी साहब आॅडिशन कमेटी में थे। इस बात का ज़िक्र अमीन सयानी साहब से अपने कई इंटरव्यु में किया है और साथ ही यह भी कहा है कि इस बात का उन्हें उम्र मलाल रहेगा कि उस वक़्त उन्होंने अमिताभ बच्चन साहब की आवाज़ को रेडियो प्रसारणों के उपयुक्त नहीं पाया और उन्हें रिजेक्ट कर दिया। अगर वह अमिताभ बच्चन साहब को केवल रिजेक्ट करते तो भी कोई बात नहीं थी, इस किस्से के जानकार लोग बताते हैं कि उन्होंने तब अमिताभ बच्चन साहब को रिजेक्ट करते समय कहा था कि ‘‘यह कोई आवाज़ है, अपनी इस भारी भरकम आवाज़ से तुम तो डरा दोगे लोगों को। यह आवाज़ रेडियो उद्घोषक के लायक नहीं है।’’ किन्तु बाद में यही अमिताभ बच्चन अपनी दमदार आवाज़ आवाज़ और शानदार अभिनय के कारण अमीन सयानी साहब के फवरेट एक्टर बने। गायकों में सयानी साहब किशोर-दा को पसंद करते थे और मज़े की बात यह है कि उस समय के सभी गायक-गायिकाएं अमीन सयानी साहब को पसंद करते थे।
कहने की आवश्यकता नहीं कि अमीन सयानी साहब की आवाज़ में रेडियो सिलोन से प्रसारित विनाका गीत माला, जो कि आगे चलकर सिबाका गीतमाला बना ने न केवल श्रोताओं का मनोरंजन किया बल्कि हिन्दी सिनेमा के गायक-गायिकाओं को श्रोताओं की कसौटी पर कसने का काम भी किया। इस गीतमाला के एक-एक पायदान पर चढ़ते हुए किसी गीत का लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचना, उस गीत के गायक-गायिका के लिए निश्चित रूप से गर्व की बात होता था।
बचपन में अमीन सयानी साहब की इच्छा गायक बनने की थी, मगर होता तो वही है, जो मंज़ूर-ऐ-खुदा होता है। आगे चलकर वह रेडियो उद्घोषक बने और आवाज़ की दुनिया में केवल राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है।
आवाज़ के जादूगर अमीन सयानी साहब ने 42 वर्ष तक ‘विनाका गीतमाला’ और ‘सिबाका गीतमाला’ को बतौर उद्घोषक अपनी आवाज़ दी। यह इनका पहला राष्ट्रीय रेडियो शो था। इसके साथ ही ‘एस कुमार का फ़िल्मी मुकदमा’ और ‘फिल्मी मुलाकात’ भी उनके प्रसिद्ध रेडियो शो में से एक था, जो लगभग 7 वर्षों तक श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन और विविध भारती पर प्रसारित हुआ था। इसके बाद 4 सालों तक अमीन सयानी ने ‘सैरिडोन के साथी’ नामक आकाशवाणी का पहला प्रायोजित शो को भी प्रस्तुत किया। सन् 1975 में इन्होंने अपने गुरु और बड़े भाई हमीद सयानी की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ी में बॉर्नविटा क्विज़ प्रतियोगिता शो की कमान संभाली। अमीन सयानी ने ‘संगीत के सितारों की महफिल’ नामक रेडियो शो भी किया। इसमें संगीत करियर के रेखाचित्र, प्रसिद्ध गायक, गीतकार और संगीतकारों से साक्षात्कार आदि से सम्बंधित कार्यक्रम शामिल थे। इस शो को लगभग 4 वर्षों तक अमीन सयानी साहब ने प्रस्तुत किया। इनका यह रेडियो शो इतना लोकप्रिय था कि इसे केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुना जाता था। अलावा इसके इन्होंने 14 वर्षों तक ‘सितारों की पसंद’, ‘महकती बातें’ और ‘चमकते सितारे’ जैसे कई रेडियो शो प्रस्तुत किए जो उस समय के श्रोताओं को आज भी याद हैं। अलावा इसके इन्होंने एच.आई.वी. एडस जागरुकता के संदर्भ प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकता और डाक्टरस से साक्षात्कार पर आधारित ‘स्वनाश’ नामक रेडियो शो भी प्रस्तुत किया।
अमीन सयानी जी के अंतराष्ट्रीय रेडियो शो की यदि हम बात करें तो, इन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय रेडियो शो प्रस्तुत किए थे, जिसमें फिल्म स्टारस से साक्षात्कार, लघु सम्मेलन, लाखों लोगों के लिए संगीत, 4 सालों तक लंदन में सनराइज रेडियो पर वीटी का हंगामा, संयुक्त अरब अमीरात में गीत माला की यादें और 8 महीने तक ‘यह भी चंगा वह भी खूब’ जैसे लोकप्रिय रेडियो शो शामिल हैं। इसके अलावा इन्होंने ‘संगीत पहेली’ नामक रेडियो शो को भी 1 वर्ष तक प्रस्तुत किया था। बोस्टन, सैन फ्रांसिस्को, टोरंटो, वाशिंगटन के कई विभिन्न रेडियो चैनल पर ढाई साल तक हैंगमे नामक रेडियो शो को भी अमीन सयानी साहब ने प्रस्तुत किया था।
आवाज की दुनिया के इस जादूगर को मिले मान-सम्मान एवं पुरस्कारों की यदि हम बात करें, तो सूची निश्चित रूप से लम्बी है। रेडियो के पहले जोकी अमीन सयानी जी को रेडियो के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सन् 1991 में इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स द्वारा गोल्डन मेडल से सम्मानित किया गया। इंडियन रेडियो स्टूडियो में बड़ा योगदान देने वालों को सम्मानित करने के उद्देश्य से फिक्की के द्वारा इंडियन रेडियो स्टूडियो के साथ मिलकर स्थापित अवॉर्ड लिविंग लीजेंड अवॉर्ड से भी इन्हें इसी वर्ष सम्मानित किया गया। सन् 1992 में इन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के पर्सन ऑफ द ईयर अवॉर्ड से नवाजा गया। सन् 1993 में भारतीय अकादमी ऑफ एडवर्टाइजिंग फिल्म कलाकार को हॉल ऑफ फेम अवार्ड से सम्मानित किया गया, तब अमीन सयानी साहब को सम्मानित किया गया। सन् 2003 में रेडियो मिर्ची की ओर से इन्हें कान हॉल ऑफ फेम अवॉर्ड से नवाजा गया। सन् 2006 में इन्हें फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर ऑफ कमर्स एंड इंस्टीट्यूट की ओर से लिविंग लीजेंड अवार्ड से सम्मानित किया गया।
इसके बाद सन् 2007 में इन्हें दिल्ली के हिन्दी भवन द्वारा इन्हें हिंदी रत्न पुरस्कार से नवाजा गया। सन् 2012 में इन्हें रेडियो हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया था, जिससे सम्मानित होने वाले अमीन सयानी पहले भारतीय और एशियाई बने। वर्ष 2009 में अमीन सयानी जी को भारत सरकार के पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2016 में इन्हें 19वें हीरामणिक पुरस्कार के लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अमीन सयानी जी के संदर्भ में एक खास बात यह भी रही है कि उम्र के अंतिम पड़ाव पर भी उनकी आवाज़ में वही पहले जैसा दमखम और वही आकर्षण रहा है और वह अपने खराब स्वास्थ्य के बावज़ूद मुम्बई के रीगल सिनेमा के साथ वाली बिल्डिंग की दूसरी मंज़िल पर स्थित अपने स्टूडियो में जाकर कुछ समय गुज़ारते रहे हैं। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वह अपनी बाॅयोग्राफी लिखें, मगर अफ़सोस कि उनकी यह इच्छा पूरी नहीं सकी।
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि भले ही आवाज़ के जादूगर अमीन सयानी जी अपनी सांसारिक-यात्रा पूरी करके इस संसार से चले गए हैं, किन्तु उनकी आवाज़ का जादू अब भी लोगों के जे़हन पर छाया है और विश्वास किया जा सकता है कि यह आने वाली कई सदियों तक छाया रहेगा। अमीन सयानी जी के जाने से आवाज़ की दुनिया में एक अलग अंदाज़ वाली प्रेरक आवाज़ के रूप में निश्चित रूप से शून्य की स्थिति आ गई है। उनकी कमी अब शयद ही कभी किसी रूप में पूरी हो। आवाज़ के महान जादूगर को विनम्र श्रद्धांजलि!
- आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग,
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