लेख-आलेख

कोच खड़ा बाज़ार में

आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट

कोचिंग सेंटर संचालन के संदर्भ में केन्द्र सरकार की गाइडलाइनस-2024 क्या आई कि कोच तो बेचारा बाज़ारा में ही खड़ा हो गया। बेचारा भी मुझे आज उसकी मानसिक हालत को देखकर ही कहना पड़ रहा है, वरना इससे पहले मेरी तो क्या किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि किसी कोचिंग सेंटर के संचालक अथवा कोचिंग संस्था से जुड़े किसी भी सब्जेक्ट एक्सपर्ट को कोई बेचारा कहकर पुकार दे। एक तो उसका महंगे से महंगी गाड़ी में चलना और ऊपर से चैक-चैराहों और मुख्य बाज़ार में लगे बड़े-बड़े होर्डिंगस में प्रतियोगी परीक्षाओं में सफ़ल हुए छात्र-छात्राओं की भीड़ की फोटो से ऊपर राजनेताओं की तरह से हाथ जोड़े बिना ही शान से मुस्कराते नज़र आना किसी को इतनी छूट दे भी कैसे सकता है कि कोई किसी कोचिंग सेंटर के संचालक को अथवा किसी कोच को बेचारा कह सके।
इस पर भी यदि किसी कोचिंग सेंटर में पढ़ाते-पढ़ाते अथवा आते-जाते किसी पर सब्जेक्ट एक्सपर्ट होने का ठप्पा लग गया है तो उम्र छोटी हो या बड़ी एक्सपर्ट तो एक्सपर्ट ही होता है और जब इसके साथ ही जब भारतीय संस्कृति के प्रतिमानों की फुहार से फुहारित अर्थात संस्कारित किसी व्यक्ति में किसी भी टीचर अथवा ट्युटर को देखते ही उसे गुरु का दर्ज़ा दे दिए जाने की प्रबल भावना जन्म से ही हिलौरें मारती पाई जाती है, तो कोई भी शिक्षक अथवा ट्युटर कभी सपने में भी यह नहीं सोच सकता कि उसे किसी के द्वारा दी गई गाइडलाइन के द्वारा उस सिंहासन से उतारा जा सकता है, जो कि महात्मा कबीर दास जी द्वारा लिखी गई दो पंक्तियों से सदा-सदा के लिए उनके नाम हो गया है। मतलब कि कबीर ने अपने समय की भोली-भाली जनता से एक पंक्ति का यह सवाल करके खुद ही दूसरी पंक्ति के रूप में एक पंक्ति का ज़वाब क्या दे दिया कि ‘‘गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाए, बलिहारी गुरु आपनो जिन गोबिंद दियो मिलाए ’’ कि उस समय की जनता ने भगवान से पूछे बिना ही गुरु को भगवान के आसन पर बैठा दिया। फिर क्या था, परम्परा चली तो ऐसी चल निकली कि सरकारी ज़मीन पर लम्बे समय तक काबिज़ रहने वाले व्यक्ति की तरह से अब गुरु है कि भगवान के कहने पर भी उसके आसन से न उतरे।… और उतरे भी तो आखिर क्यों उतरे? यह गुरु का आसन ही तो है, जिस पर बैठ कर कोई भी अपनी पूजा अपने समय के भगवान की तरह से करवाने लगता है और अपने समय की जनता का स्वामी, बाबा अथवा महाराज बन कर समाज पर राजा नहीं बल्कि किसी महाराजा की तरह से राज करता है। ऐसे में व्यक्ति भूल जाता है कि अपने अटूट विश्वास के कारण जनता जिस भीत के लेव को देव मान कर भगवान की तरह पूज सकती है, विश्वास टूटने पर उसे ही उखाड़ कर फैंक भी सकती है। लगभग ऐसा ही कुछ हुआ है कोचिंग सेंटर के कोच के साथ भी।
जब कोचिंग सेंटर के कोच में तथकथित बाबाओं की तरह से धन-संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ने लगी तो सरकार ने भी देख लिया कि अब तो सच में ही गुरु ‘गुरु’ नहीं रहा है, तो लोकतंत्र में लोगों के द्वारा चुने जाने पर लोगों के लिए काम करने की शपथ लेने वाली सरकार ने भी देव को भीत के लेव की तरह उखाड़ फैंकने की अपनी कार्रवाई को तुरंत अंज़ाम दिया और कोच बेचारा बाज़ार में आ खड़ा हुआ। अब कुछ शर्तों को पूरा किए बिना न वह अपने कोचिंग सेंटर का रजिस्ट्रेशन करवा सकता है, न मनमर्ज़ी की फीस ले सकता है और न फीस जब्त करने की बात कहकर साल भर तक अपने छात्र-छात्राओं को रोक सकता है। और तो और अब तो बेचारा अपनी प्रतिभा को बेचने के लिए अपनी योग्यता व क्षमता का बढ़ा-चढ़ा कर विज्ञापन भी नहीं कर सकता है। बस बेचारा बाज़ार में खड़ा है बिकने के लिए और उसके साथ बहुत ही थोड़े अंतराल के बाद पी.जी. संचालक भी मक्खी मारते नज़र आने वाले हैं। लोग अपनी आँखों पर लगे चश्मे का शीशा साफ़ करके देखने के लिए तैयार रहें कि अब आगे-आगे होता है क्या-क्या।
– आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
प्रधान सम्पादक, आनन्द मार्ग, हिन्दी द्विमासिक,
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग, कोंट रोड, भिवानी, -127021(हरियाणा)
मो. – 9416690206 email : anandprakashartist@gmailcom

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