सुनीता आनन्द
- वह पूरी उम्र पाकर स्वर्गवासी हुआ था, इसलिए सभी ने कहा था कि शवयात्रा भी गाजे-बाजे के साथ निकालनी चाहिए और समाज की परम्परा के अनुसार मृत्युभोज का आयोजन भी होना चाहिए।
‘‘हाँ ऐसा तो होना ही चाहिए।’’ – गाँव के एक मौजीज़ व्यक्ति ने कहा था।
जाने वाले की पत्नी चुप थी और जाने वाला तो पहले ही शव के रूप में शांत पड़ा था। थोडी देर बाद उसकी शवयात्रा गाजे-बाजे के साथ निकली थी और बाद में मृत्युभोज का दिन भी निश्चित हुआ था और मृत्युभोज भी सामान्य नहीं, बल्कि कई तरह के पकवानों वाला दिया गया था।
दूर पास के सब रिश्तेदारों को आंमत्रित किया था और गाँव-गुहाण्ड़ के लोगों का तो विशेष ख्याल रखा गया था कि जान-पहचान वाला कोई व्यक्ति छूट न जाए।
सब-कुछ ठीक-ठीक निपट गया था। पर आज एक बार फिर जाने वाले के पुत्र-पुत्रियाँं, पुत्रवधुएँ और कुछ रिश्तेदार इकट्ठे हुए थे घर में और चर्चा चल रही थी उनमें कि किसने, कब कितना खर्चा किया है और पिता जी पीछे जो सम्पत्ति छोड़ गए हैं, उसका बंटवारा कैसे होगा। भरे-पूरे परिवार के बीच बैठी, जाने वाले की पत्नी एक बार फिर देख रही थी उस द्वार की ओर जिससे उसके पति की अर्थी गाजे-बाजे के साथ निकली थी और वह देखती रही थी चुपचाप।
– सुनीता ‘आनन्द’
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