कथा-कहानी

साईकिल वाला आसन नम्बर एक

सुनीता आनन्द

‘‘अरे साधना तुम तो आज भी वैसे की वैसी हो, जैसी कि अपने काॅलेज के दिनों में थी।’’ साधना की सहेली सुदेश ने उस दिन शादी समारोह में मिलते ही कहा था साधना से। 
‘‘और तुम, तुमने यह क्या हाल बना लिया, कितना मोटापा तो तुम्हारे नितम्बों पर चढ़ आया है और कितना बेडौल सा तुम्हारा यह शरीर हो गया है।’’ साधना ने कहा था।
‘‘शादी के बाद इतना बदलाव तो आ ही जाता है।’’ सुदेश ने कहा था।

‘‘शादी तो मैंने भी की है और तुमसे पहले की है, लेकिन…।’’ साधना ने कहा था।
‘‘तो फिर मुझे भी बताओ न यार इस बेमतलब के मोटापे से बचने का राज।’’ सुदेश ने पूछा था।
‘‘सुनो इसका राज कोई गहरा नहीं है। बस इतना ही है कि जिस तरह से काॅलेज के दिनों में हम अपने गाँव से अपनी-अपनी साईकिल पर जाते थे, मतलब कि साईकिल चलाते थे, उसी तरह का एक आसन है ‘द्वि-चक्रिकासन-1’ जो जंघा, नितम्ब और कमर पर बढ़ी हुई चर्बी को कम करता है और उदर को हल्का व सुडौल रखता है। शरीर के अन्य हिस्सों पर भी चर्बी का संतुलन बनाए रखता है।’’ साधना ने कहा था।
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है, इसे करने से कोई हानि तो नहीं होगी न? सुदेश ने पूछा था।
‘‘आरे भई जब काॅलेज के दिनों में इतने दिन अपने गाँव से शहर तक साईकिल पर आने-जाने से कोई हानि नहीं हुई, तो अब कैसे हो सकती है?’’ साधना ने कहा था।
‘‘तो फिर बताइए मुझे कि कैसे करना है इस आसन को? कहीं बहुत ज़्यादा मुश्किल तो नहीं है न यह आसन?’’ सुदेश ने पूछा था।
‘‘अरे नहीं यार, बस ऐसा करना है कि सबसे पहले ज़मीन पर सीधे लेटना है, अपने दोनों हाथों के पंजों को नितम्बों के नीचे रखकर अपने श्वास को रोक कर बाएं पांव की एड़ी को इस तरह से नितम्ब के पास लाना है जैसे कि साईकिल चलाते वक्त यह अपने आप गद्दी के निचले हिस्से के पास आती है, अब इस पांव को फैला कर आगे की तरफ ले जाना है और इसी अनुपात में दाएं पांव की एड़ी को दाएं नितम्ब तक लाना है और पैरों को बिना ज़मीन पर छुआए लगातार 10 से लेकर 25-30 बार तक

मतलब कि जितनी भी देर तक बिना थके कर सकें, करते रहना है।’’
‘‘मतलब कि लेट कर साईकिल चलानी है?’’
‘‘हां बिल्कुल ठीक समझा तुमने और जिस तरह से साईकिल चलाते-चलाते जब हम थक जाते थे, तो बीच में आराम कर लेते थे, उसी तरह से इस आसन में भी आराम कर सकती हो, पर यह आराम उठ कर या बैठकर नहीं करना है, बल्कि शव आसन में लेटे-लेटे ही करना है।… और जैसे हम कई बार साईकिल के उल्टे पैडल भी लगाते थे, उसी तरह से इस आसन में हमंे उल्टी साईकिल चलाने जैसा भी करना है आर्थात जैसा हम अपने पैरों से सीधी साईकिल चलाने जैसा इस आसन में करते हैं, उसी तरह से उल्टी साईकिल चलाने जैसा भी हमें करना है।’’
‘‘जब सुल्टा कर सकते हैं, तो उल्टा करने में क्या परेशानी हो सकती है?’’ सुदेश ने कहा था।
‘‘मतलब कि द्वि-चक्रिकासन-1 पूरी तरह से समझ में आ गया तुम्हें?’’ साधना ने पूछा था।
‘‘करके दिखाऊँ यहीं पर?’’ सुदेश ने कहा था।
‘‘नहीं, अब तो जिसकी शादी में आई हो उसे बधाई दो, आसन तो अपने घर पर सुबह-शाम करना और अपने शरीर को फिर पहले जैसा सुडौल बनाना।’’ साधना ने कहा था और सुदेश का हाथ पकड़ कर स्टेज़ की ओर बढ़ गई थी कि जैसे द्वि-चक्रिका के एक पैडल को उसने खुद ही दबा कर कह दिया हो कि लो अब चलाओ साईकिल और रहो सुडौल।…
— सुनीता ‘आनन्द,
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग,
कोंट रोड़, भिवानी-127021(हरियाणा)
मो. नं.- 9416811121

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