कथा-कहानी

उनका दर्द

आज फिर अमन का पत्र मिला I
“बाबुजी केन्द्र व राज्य की वर्तमान सरकार के प्रयासों से यहाँ की स्थिति सामान्य होती जा रही है I पर्यटक भी निडर हो आ-जा रहे हैं, उनकी संख्या पहले से बढ़ गई है I इस सीजन में बाबा का काम अच्छा चल रहा है I आराध्या मन लगा कर पढ़ती है I अब वह बहुत अच्छी पेंटिंग बना लेती है I अम्मा का दर्द पहले से कुछ बढ़ गया है I आपकी प्रेरणा से मैंने भी बी.ए. में दाखिला ले लिया हैI अम्मा आप सबको बहुत याद करती है I आप भी अपने बारे में सब समाचार देना I”
तभी मेरा मित्र शिव आया I वह कश्मीर जाने का कार्यक्रम बना रहा था I मैंने उसे अपना पूरा यात्रा वृतांत सुनाते हुए अमन और उसके परिवार के बारे में बताया-
‘तुम डल झील में अमन के बाबा की ‘सलोनी’ हाउसबोट में ठहरना I उनके लिए यह पैकेट भी लेते जाना I’
“क्या है इसमें ?”
“बिटिया के लिए ड्रेस और पेस्टल कलर ,अमन के लिए डायरी –पैन, अम्मा के लिए दर्द का तेल और बाबा के लिए तुलसी की माला I”
मेरा मन एक बार फिर से कश्मीर में विचरने लगा I
पिछले दिनों भारत व पाकिस्तान के प्रधान मंत्रियों की सौहार्दपूर्ण मन्त्रणा से देशवासियों ने सुख की साँस ली I उनके मन में भी एक आस जगी कि अब सम्भवतः परिस्थितियां पहले जैसी कटु न रहें I दोनों देशों में आतंकी घटनाएँ दिन –प्रतिदिन की बात हो गई थी I कभी ‘चरारे शरीफ’ की दुर्घटना तो कभी कराची में बम विस्फोट I इस सबका प्रभाव धरा का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर पर सबसे अधिक पड़ा था I परन्तु भारत के प्रधानमंत्री की शांति-पहल ने हमारा भी उत्साह बढ़ाया और वर्षों पुरानी कश्मीर देखने की हमारी इच्छा बलवती हो उठी I हम वहां के कण –कण में समाई प्राकृतिक सुषमा को प्रत्यक्ष देखने के साथ –साथ कैमरे में उतार कर सदा के लिए मन में बसा लेना चाहते थे I मैंने ,पत्नी सपना, बहू – बेटे और पोती तन्वी का आवश्यक सामान साथ लिया और पहुंच गये अपने सपनों के जम्मू – कश्मीर I हमने एक –एक कर वहां रघुनाथ मन्दिर, हजरतबल ,चरारे शरीफ ,निशातबाग,पहलगाँव आदि देखा I श्रीनगर में जब हम डल झील पर गये तब वहां सैलानियों की भीड़ थी I हाउसबोट खाली न मिलने के कारण हमने डल झील देखने का कार्यक्रम गुलमर्ग के बाद में रखा I दो दिन श्रीनगर के अप्रतिम सौंदर्य का पान करने के बाद हम गुलमर्ग पहुंचे I गुलमर्ग घास का अति सुन्दर मैदान था, पर वहां बर्फ दिखाई न पड़ी, जिसके लिए वह प्रसिद था ,जिस पर सभी प्रकार के खेल – गोल्फ ,स्कीइंग आदि होते हैं I
हिमाच्छादित चोटियों को देखने की हमारी इच्छा तीव्र हो उठी क्योंकि कश्मीर बर्फ और फूलों की घाटियों के लिए ही तो प्रसिद्ध है I किसी अन्य सैलानी ने बताया की यहाँ से ऊपर खिलनमर्ग है , तुम्हें वहां बर्फ अवश्य देखने को मिलेगी I जब वहां नियुक्त चौकीदार ने हमे बताया कि खिलनमर्ग केवल यहाँ से कोई दस –बारह किलोमीटर की दूरी पर है I हम पति-पत्नी प्रतिदिन पांच किलोमीटर की सैर करने के अभ्यस्त थे, बेटा –बहू जवान थे और छह महीने की पोती को हम क्रमवार गोद में उठाने को तैयार थे I यधपि गुलमर्ग से खिलनमर्ग जाने के लिए रोप वे भी था परन्तु हम उत्साह के अतिरेक में पैदल ही चल दिए I यह कच्चे –पक्के पहाड़ों की अनजान पगडंडियों वाली चढ़ाई थी I चारों ओर गगन को छूते ऊंचे –ऊंचे चिनार के पेड़ थे I इन पेड़ों पर पानी की बूंदे लटकी थी I लगता था जैसे अभी –अभी बारिश हुई हो I चीड़ और चिनार के पेड़ों के बीच सांय –सांय की ध्वनि करती तीव्र हवा हमें रोमांचित कर रही थी I पर इस निर्जन और रहस्यमय स्थान पर कुछ देर बाद यह वातावरण हमें भयावह लगने लगा I तभी मुझे घोड़े की पदचाप सुनाई पड़ी I घोड़े पर बैठे दो यात्री इसी ओर आ रहे थे I हम आश्वस्त हुए कि हम सही पथ पर हैं I वे यात्री हमारी ओर एकटक देखे जा रहे थे I खच्चर वाला हमसे सम्बोधित हुआ ,
“ छोटे बच्चे के साथ आप किसी भी स्थिति में वहां नहीं पहुंच पाएंगे I यहाँ मार्ग में हिंसक वन्यजीव भी मिल सकते हैं इसलिए आप लोग खच्चर कर लीजिए, यदि वर्षा आ गई तो कहीं रुकने का स्थान भी नहीं है I मैं ऊपर मैदान पर पहुंच कर किसी अन्य खच्चर को भेज दूंगा I” हमने देखा सचमुच मेघ घिर आए थे I
“परन्तु इतनी देर में तो हम खिलनमर्ग के पास ही पहुंच जाएंगे, प्रतीक्षा करने का कोई लाभ नहीं I” हमने एक दूसरे को कहा I
छह महीने की बच्ची को ठंड से बचाते हुए हम संभल कर चढ़ाई कर रहे थे और एक दूसरे को सांत्वना देते हुए… बस अब पहुंचे…अब पहुंचे, करते जा रहे थे I इक्का –दुक्का खच्चर पर बैठे यात्री हमे पैदल जाते देख आश्चर्यचकित होने के साथ –साथ चेतावनी दे रहे थे कि जब तक आप ऊपर पहुंचोगे तब तक रात घिर आएगी I पर हमने आस नहीं छोड़ी I इसी बीच बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बूंदाबांदी शुरू हो गई , तब हम सचमुच घबराए I दूर –दूर तक कहीं कोई आश्रयस्थल नहीं था I वर्षा के कारण फिसलन बढ़ गई थी, जिससे हमारी गति भी प्रभावित हो रही थी I तभी एक स्थानीय कश्मीरी आता दिखाई पड़ा I हमें देख कर वह आश्चर्यचकित रह गया,
“बाप रे बाप ! खुदा कसम ! बहुत से सैलानी देखे पर ऐसा हिम्मत वाला टूरिस्ट पहली बार देखा, छोटे बच्चे के साथ इतना जोखिम उठा कर पैदल चल दिया रे बाबा, तुम लोग I” “खिलनमर्ग अभी कितनी दूर है बाबा ?” बेटे ने पठान से पूछा I
“बस दो –तीन किलोमीटर ही रह गया है I”
सुन कर हमारे अंदर ऊर्जा का संचार हुआ और हम आगे बढ़ चले I कुछ देर बाद हमें दूर से आता शोरगुल सुनाई पड़ा I सामने बर्फ का मैदान देख कर हमारी बांछें खिल गई I ऊपर नील गगन, पैरों तले श्वेत बर्फ का मैदान दूर तक दिखाई दे रहा था I पहाड़ की चोटियों पर मेघों का मेला लगा हुआ था I यहाँ का मनोरम दृश्य हमें अपने आकर्षण में बांधे हुए था ,परन्तु मेरी आँखे जहाँ एक ओर मेघों की चिरंतन क्रीड़ा में अटकी थीं वहीं दूसरी ओर घड़ी की सुइयों पर I वहां केवल बीस –पच्चीस सैलानी थे I हम शीघ्रता से स्लेज गाड़ी में बैठे, स्कीइंग की, कुछ देर तक बर्फ पर पैदल चले, एक दूसरे को बर्फ के गोले बना –बना कर मारे व इन दृश्यों को कैमरे में कैद किया I
मैं अत्यधिक चिंतित था, क्योंकि वहां कोई खच्चर खाली नहीं था इसलिए हमें पैदल ही वापिस लौटना था I वहां खेल –कूद कर रहे बेटे को मैंने शीघ्र चलने और पुन: पूरी योजना के साथ आने का आश्वासन दिया I तभी मैंने एक कश्मीरी युवक को तेजी से नीचे उतरते हुए देखा I वह हमारी आवाज सुन कर तनिक थमा और स्वयं ही बोला ,
“नीचे जा रहे हो ? बर्फवारी होने को है… इस रास्ते से तो तुम्हे चार घंटे लग जाएंगे … मेरे साथ चलो मैं तुम्हें छोटे रास्ते से जल्दी पहुंचा दूंगा I”
इस अप्रत्याशित सहायता ने हमें शंका में डाल दिया ,
“ लगता तो मुस्लिम है और कुछ मुस्लिम तो हिंदुओं से कट्टर शत्रुता रखते हैं I”
हमारे पास कुछ अन्य सोचने –करने का समय ही कहाँ था … सो कोई विकल्प न देख हम चुपचाप उसके पीछे हो लिए I मेरी पत्नी ने बहू का व अपना मंगलसूत्र और चूड़ियाँ उतार कर बेटे के कोट की जेब में डालने को कहा I सम्भवतः उसने ऐसा करते हुए हमे देख लिया था, इसलिए पूछा ,
“हिन्दू हो ?”
“हाँ …” हमारा हृदय धक्क से रह गया I
“क्या काम करते हो बाबुजी ?”
“कपड़े का व्यापारी हूँ I”
वह हमसे लगातार बातें करने को उत्सुक था और हम सकुचाए से संदेह से घिरे केवल हूँ … हाँ … और ना में ही उत्तर दे रहे थे, परन्तु उस पर विश्वास तो रखना होगा और रखने से अधिक दर्शाना होगा I सो कुछ पल की चुप्पी उपरांत मैंने वार्तालाप शुरू करते हुए पूछा ,
“तुम्हारा क्या नाम है ?”
“अमन…कश्मीरी पंडित हूँ I”
“तुम्हारे परिवार में और कौन –कौन हैं ?”
“मेरा छोटी बहन और अम्मा – बाबा! ”
“तुम्हारे बाबा क्या करते हैं ?”
“बाबा की हाउसबोट है …पर आधे से ज्यादा वक्त खाली खड़ी रहती है … भारत और पाकिस्तान के बीच कटुता का और रह –रह कर आतंकियों के कहर का असर सीधे –सीधे हमारी रोजी -रोटी पर पड़ता है … क्या करें बाबूजी ?”
यह कहते हुए वह उद्विग्न दिखाई पड़ा I
“और तुम क्या करते हो ?” एक क्षण की चुप्पी के बाद वह बोला ,
“मैं तो गाइड हूँ बाबुजी पर पढ़ –लिख कर भी यहाँ के युवक भेड़ –बकरियां चराते हैं …वे चाह कर भी आगे नहीं पढ़ सकते …बेकारी के चलते कितने ही युवक दो –तीन हजार प्रति माह के लालच में पाकिस्तान चले जातें हैं और वहां प्रशिक्षण पाकर ताउम्र उनके इशारों पर नाचते हैं … वे जान –बूझ कर आतंकी नहीं बनते बाबुजी …यहाँ के हालात ही इनसे सब कुछ करवाते हैं ,” यह कहते हुए हमने देखा उसका चेहरा सख्त हो चला था I वह क्रोध में मेरी ओर देखते हुए अचानक बोला,
“ बाबुजी आप लोग जानते ही कितना हो कश्मीर को …आपको सिर्फ यहाँ की झीलें ,बर्फ़ ,पहाड़ और हरी भरी घाटियाँ ही नज़र आती हैं …इनके सम्मोहन में आप लोग यहाँ केवल कुछ समय का लुत्फ़ लेने के लिए खिंचे चले आते हो…”
थोडा रुक कर मुझ पर नज़र टिकाए हुए वह फिर बोला ,
“बाबुजी आप यहाँ आकर बिजनैस क्यूँ नहीं करते ? ताकि मेरे जैसे कितने ही बेकार युवकों को रोज़गार मिले … पर कहाँ ? यहाँ बसे बहुत से कश्मीरी -पंडित गुंडों और पुलिस की ज्यादती के कारण अपनी जमीनें और जमा –जमाया बिजनैस छोड़ कर भाग गये … आप लोग भी बस कश्मीर …कश्मीर हमारा है ,अलापते रहते हो … कभी दिल से कहा है कि कश्मीरी हमारे हैं ?” उसकी आँखें सही उत्तर पाने को उत्सुक थीं, पर मुझसे कुछ भी कहते न बन पड़ा , इतना अवश्य लगा कि वह उन कश्मीरियों का प्रतिनिधत्व कर रहा है जो शांतिप्रिय हैं और वह उनके कष्टों को स्वर दे रहा है I सच ही तो कह रहा है यह युवक … हम कहाँ जानते हैं कश्मीर की वास्तविकता को… हम तो बस सावन के हरे चश्में से हरा –हरा देखने के अभ्यस्त हैं … यहाँ की झीलें ,हिमाच्छादित पहाड़, झरने और सौंदर्य से भरपूर चिनार, चीड़, देवदार, बांज-बरुंश के वृक्ष ही देखते हैं… कभी दहकते चिनारों के साथ–साथ कश्मीरियों के दहकते मन में उठी चिंगारियों को अनुभव किया है हमने ?
अब हम चुप्पी साधे उसके पीछे चले जा रहे थे I मार्ग में तीन–चार कश्मीरी युवक और मिले जो शीघ्रता से नीचे जा रहे थे I अमन ने दो पल रुक कर उन्हें कुछ संकेत किया और अपनी कश्मीरी भाषा में कुछ कहा जो हमारी समझ से परे था I
मैंने मन ही मन सोचा-
‘आज तो बुरे फंसे, कहीं यह युवक झूठ तो नहीं बोल रहा, कहीं यह मुस्लिम…आतंकवादी तो नहीं ? मैंने उसे ध्यान से देखा –उसी तरह का फिरन, ढीली सलवार और कंधे पर मैला –सा कम्बल I कंबल या ढीले –ढाले चोगे में ये लोग छोटे- छोटे हथगोले या बंदूक छुपा कर रखते हैं I हे भगवान ! कहीं ये सब मिल कर हमारा अपहरण न कर लें I”
पहली बार आतंक का साया सिर पर मंडराता लगा I
“लाओ इस बच्ची को हमें दे दो, शायद आप लोग थक गये होंगे, ” अचानक अमन ने कहा I
“नहीं – नहीं हमे कोई थकावट नहीं, ”
यह कहते हुए बच्ची पर मेरी पकड़ बढ़ गई I हमने अब चुप्पी धारण कर ली और सहमे हुए से एक दूसरे की आँखों में झाँकने लगे I इतनी ठंड में भी मैं पसीने में नहा उठा, फिर भी मुख पर कृत्रिम मुस्कान बनाए रखी I कुछ दूर जाने पर यकायक अमन ने फिर कहा ,
“एक मिनट रुको या तुम लोग धीरे – धीरे चलो, मैं अभी आता हूँ I”
हमने देखा वह एक मकान के अंदर गया और कुछ देर बाद वापिस लौट आया I मैंने प्रश्नात्मक दृष्टि से पत्नी की ओर देखा, प्रश्न –प्रश्न बन कर ही लौटा I हमारी शंका और भी बढ़ गई और लगा आज तो बुरे फंसे I एक गहन श्वास अंदर खीँच कर मैंने दौड़ लगा रहे अपने मन और फिर हृदय गति को नियंत्रित किया I अमन फिर से बोला ,
“अरे आप लोग तो बिलकुल चुप हो गये ,बातें करते रहने से रास्ता अच्छे से कट जाएगा … आप लोग श्रीनगर में कौन सी हाउसबोट में ठहरे हो ?”
हमारी दृष्टि उसे तौल रही थी I ‘कहकशा’ मेरी जिह्वा से फिसला I
“इस नाम की तो कोई हाउसबोट है ही नहीं, ” कुछ रुक कर स्वयं ही बोला,
“हो सकता है यह डल झील के पश्चिमी किनारे वाली कोई बोट होगी , मेरे बाबा तो पूर्व में डेरा डाले हुए हैं, उन्हीं के मुंह से हम हाउसबोट के अलग –अलग नाम सुनते रहते हैं I”
तभी कहीं दूर पटाखों की सी ध्वनि सुनाई पड़ी I हम एकदम भयभीत हो गये और आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे I वह बोला, “लगता है आप लोग डर गये ,ये गोलियां चलने की आवाजें हैं… हम इन आवाजों को सुनने के अभ्यस्त हैं, इसलिए डर नहीं लगता … हर रोज़ इंडियन आर्मी और दहशतगर्दों के बीच यहाँ गोलियां चलती रहती हैं I”
“हम कितनी देर में नीचे पहुंच जाएंगे ?” हिचकिचाते हुए मैंने पूछा I
“क्यों बाबुजी हम पर विश्वास नहीं है ना, हो भी कैसे ? बस दस मिनट में आप अपनी टैक्सी स्टैंड के पास होंगे I”
अचानक मेरे बेटे का पांव फिसला और खड़ी उतराई के कारण वह तेजी से नीचे की ओर गिरने लगा, आगे चल रहे अमन ने पीछे पलट कर तुरंत उसे अपने हाथों में थाम लिया I एक –दो मिनट रुक कर हम फिर से चल पड़े I चलते –चलते अमन ने बच्ची की ओर मुस्कुराते हुए हाथ में टॉफी पकड़ा दी I होशियारी से मैंने टॉफी जेब के हवाले कर उसके हाथ में बिस्कुट पकड़ा दिया और अमन की ओर पैकेट बढ़ाया I वह बिस्कुट खाते हुए मस्ती में बढ़ा चला जा रहा था I अब हमें कुछ जाना –पहचाना स्थान दिखाई पड़ने लगा I
“लो जी, साहबजी ! आपका टैक्सी स्टैंड आ गया , आप लोग मेरे अम्मा – बाबा से भी मिल लो, यहीं नज़दीक ही मेरा घर हैI”
हमने सुख की साँस ली, अब तक हमारी शंकायें, दुश्चिंताएँ सब मिट गईं थी और मन उसके प्रति कृतज्ञता से भर आया था I मेरी स्वीकृति पा वह अत्यंत प्रसन्न हुआ I
“बाबा ! ये बाबुजी …” उन्होंने हाथ जोड़ कर अभिवादन किया I अमन की अम्मा ने तन्वी को छुआ तो कह उठी ,
“बच्ची को तो बुखार है, शायद ठंड लगी है इसे I ”
उसने कोई स्थानीय जड़ी –बूटी घोट कर तन्वी को पिलाई और हमारे लिए कहवा पेय बनाया, साथ में वहां के स्थानीय फल परोसे I तभी लगभग दस साल की एक प्यारी सी बच्ची पीठ पर बस्ता लादे चहकती हुई आई ,
“यह मेरी बहन ‘आराध्या’… स्कूल से लौटी है, ” अमन ने परिचय कराया I
मैंने देखा सामने शंकर –पार्वती की मूर्ति रखी है I उन महिलाओं का परिधान और वातावरण देख कर उनके कश्मीरी पंडित होने में अब शक की कोई गुंजाईश नहीं थी I मुझे अपराधबोध की अनुभूति हुई I मन में बहुत से प्रश्न उमड़-घुमड़ रहे थे, सो पूछ बैठा ,
“तुम्हारे बहुत से कश्मीरी पंडित भाई यहाँ से चले गये हैं, तुम यहाँ क्यों रुके हुए हो ?”
“सदियों से हमारे पूर्वज यहाँ ही रहते आएं हैं…यहाँ के पहाड़ों और घाटियों से हमें मोह है… और यहीं हमारा मन रमता है , ”अमन की अम्मा ने कहा I
“तुम यहाँ गिने –चुने लोग ही हो, तुम्हें डर नहीं लगता क्या ?”
“काहे का डर जी …पीढ़ियों से यहाँ के मुस्लिम हमारे साथ भाईचारे से रह रहे हैं …हम एक दूसरे के रीतिरिवाजों का आदर करते हैं…अनेक बार हमारे कुछ मित्र घाटी छोड़ने के लिए कहते हैं परन्तु इनका प्रेम हमें सहज कर देता है… मरना तो एक दिन है ही …फिर मिट्टी का मोह छूटता है क्या ?”
अमन के बाबा ने ठंडी साँस भर कर कहा I
“पर ये हाउसबोट का काम तो यहाँ मुस्लिम लोग करते हैं, तुम क्यों … ?”
“रोजीरोटी के लिए बाबुजी I”
इतनी सी देर में तन्वी का बुखार उड़नछू हो गया था, मेरी पत्नी आश्चर्यचकित रह गई I हम डल झील के सिवाय लगभग सभी स्थानों का भ्रमण कर चुके थे I अमन के परिवार का सौहार्दपूर्ण अपनापन देख कर हमारा अभी दो दिन तक डल झील में विचरण करने का मन बना I हम होटल से अमन के बाबा की हाउसबोट ‘सलोनी’ में स्थानांतर हो गये I अमन भी छुट्टी करके पूरे दो दिन हमारे साथ रहा I चांदनी रात में डल झील का सौंदर्य देखते ही बनता था I दुल्हन –सी सजी हुई हाउसबोट और नौकाएं झील में परीलोक का आभास करा रही थीं I लाल – नीले –पीले – गुलाबी कमल और झिलमिलाता चाँद झील की शोभा बढ़ा रहे थे I
समय पंख लगा कर कब में उड़ गया, पता ही न चला I विदा की घड़ी में अमन की अम्मा भावुक हो गई और अपने हाथ की बनी खुबानी और अखरोट की बहुत सुंदर कलाकृति हमे भेंट की I मैंने भी उन्हें व उनकी बिटिया को कुछ रूपये देने चाहे परन्तु उन्होंने विनम्रता से वापिस लौटा दिए I हमें दूर परदेस में वे बहुत अपने से लग रहे थे, मन में विचार आया, हमारी एक सी अस्थि –मज्जा है और शरीर में एक सा ही रक्त प्रवाहित हो रहा है…विदा लेते समय उनसे गले लग कर मेरी भी आँखे नम हो गईं I इधर एक ओर हमारे दोनों परिवारों के मध्य प्यार पनप रहा था और उधर दूसरी ओर रुक –रुक कर गोलियों की आवाजें अभी भी सुनाई पड़ रही थीं I झील के विस्तार-सा उनका प्यार और उनका दर्द हृदय में समेटे हम चले आए I

  • डॉ.शील कौशिक

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