भावनाओं का समंदर
पुस्तक: भावनाओं का समंदर
लेखक : दिलबाग ' अकेला '
प्रकाशक : आनन्द कला मंच प्रकाशन, भिवानी ( हरियाणा )
संस्करण: 2024
पृष्ठ: 120
मुल्य : 300 रुपये
" भावनाओं का उमड़ता सागर है, दिलबाग ' अकेला ' का लघुकविता-संग्रह " भावनाओं का समंदर "
============
लघुकविता - साहित्य की अपेक्षाकृत नवीन काव्य- विथा है।इस विधा के जनक के रूप में सिरसा ( हरियाणा ) के वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफ़ेसर रूप देवगुण जी को जाना जाता है।उन्होंने लघुकविता का विधान बनाया।इसका प्रचार-प्रसार किया।कविता लिखने वालों को लघुकविता का विधान समझाया।उन्हें लघुकविता लिखने और लघुकविता-संग्रह प्रकाशित करवाने के लिये प्रेरित किया।लघुकवितायें लिखने में नये-पुराने कवियों का मार्ग-दर्शन किया।उन द्वारा चलाये गये लघुकविता- अभियान का ही यह सुखद परिणाम है कि देशभर से शताधिक लघुकविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।लघुकविता-संग्रह प्रकाशित करवाने वाले लघुकविताकारों में कैथल ( हरियाणा ) के दिलबाग ' अकेला ' का नाम भी सम्मिलित है।जनवरी 2024 ई० में दिलबाग 'अकेला ' के लघुकविता-संग्रह " भावनाओं का समंदर " का प्रकाशन आनन्द कला मंच प्रकाशन, भिवानी ( हरियाणा ) से हुआ और लोक साहित्यकार श्री जयलाल दास जी की 92वीं जयंती के अवसर पर इसका लोकार्पण भी भिवानी में ही हुआ।इस लघुकविता-संग्रह में दिलबाग ' अकेला ' की कुल 105 लघुकवितायें हैं।इस लघुकविता-संग्रह में जीवन, बचपन,राजनीति, समाज, सियासत,लोगों के दोहरे आचरण,निर्धनता, जाति-पाति, ऊँच-नीच व लेखन आदि को लेकर लघुकविताओं के रूप में लघुकविताकार दिलबाग ' अकेला ' की भावनायें व्यक्त हुईं हैं।" भावनाओं का समंदर " -- शीर्षक लघुकविता है जो प्रभावित करती है।बच्चों की मस्ती को देखकर मनुष्य तनाव-मुक्त हो जाता है। यह भाव दिलबाग 'अकेला ' की लघुकविता " तनाव-मुक्त " की इन पंक्तियों में देखिये :- " एक मासूम नन्हा सा बच्चा/मेरे घर के सामने / ××× खेल रहा है गली में/ उछाल रहा है कंकरों को/ दोनों हाथों से मस्ती में/ उसकी मस्ती कर गई मुझे तनाव-मुक्त।" ( पृष्ठ 16) प्राकृतिक सौंदर्य लघुकविताकार के मन को प्रफुल्लित करता है।देखिये लघुकविता " सुकून भरे पल " की ये पंक्तियाँ :- " निहारता है सुबह-सुबह/ख़ाली-ख़ाली मन/ जब प्राकृतिक सौंदर्य को/ तो हो उठता है प्रफुल्लित/ देखकर तरह-तरह के/ फूल और काँटे/ हरी-भरी लहलहाती फ़सलें/ बाग़-बगीचे चहचहाते पक्षी।" ( पृष्ठ 27) दिलबाग ' अकेला ' क़लम को एक बेहतर साथी मानते हैं और कहते हैं :- " क़लम जैसा/ कोई साथी न मिला/क्योंकि क़लम ने/ बाखूबी समझा है/ मेरी पीड़ाओं और / मेरी मुसीबतों को/क़लम ने बहाए हैं आँसू/ मेरे साथ-साथ/ और मुसीबतों में दिया है/ खूब हौसला भी।" (पृष्ठ 38 ) दिलबाग ' अकेला ' श्रृंगारिक लघुकवितायें लिखने में भी सिद्धहस्त हैं।देखिये उदाहरण : - " आजकल/ हर पल/ मेरे आस-पास/ आपके ख़्याल रहते हैं/ साथी तेरी याद में/ दिल के साथ/ हम भी बेहाल रहते हैं/ सोने से पहले/ सोने के बाद भी/ तेरी यादों से मालामाल रहते हैं।" ( पृष्ठ 53 ) दिलबाग ' अकेला ' की लघुकविताओं में जीवन-दर्शन भी देखने को मिलता है। मृत्यु अटल है। जो आता है, वह जाता है। उनकी यह लघुकविता " शून्य में " यही भाव प्रदर्शित करती है : - " इस ज़हान में/ हर इन्सान/ अकेला ही आता है/ ××× और धीरे-धीरे/ उम्र के पड़ावों को/ लांघते हुए/ एक दिन अकेला ही/ विलीन हो जाता है/ शून्य में।" ( पृष्ठ 91 ) " भावनाओं का समंदर " - लघुकविता-संग्रह की कविताओं में गुरु के प्रति दास्य भाव मिलता है।लघुकविताकार कहता है : - " आपका दास हूँ गुरुजी/ मुझे अपना दास/ बनाए रखिये/ बड़ा आनन्द आता है/ मुझे आपका दास/ बने रहने में।" ( पृष्ठ 95 ) दिलबाग ' अकेला ' जी अपने उपनाम' अकेला ' के अनुरूप अकेले रहना ही पसंद करते हैं।वे कहते हैं :- " हवाओं के साथ/ बहने की आदत नहीं/ इसलिये अकेला रहना/ बेहतर समझता हूँ।" ( पृष्ठ 108 ) " भावनाओं का समंदर " लघुकविता-संग्रह का लघुकविताकार आत्म-चिंतन करता भी दिखाई देता है।कहीं-कहीं वह स्वयं को असमंजस की स्थिति में पाता है।जीवन को एक उलझन समझता है।वह क्षुब्ध होकर मानव के दोहरे व्यवहार पर प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है।उसकी लघुकविताओं में उलाहने और शिकायतें भी मिलतीं हैं।सियासत और नेतागिरी पर कटाक्ष एवं व्यंग्य भी मिलते हैं।संग्रह में संवेदनहीन मनुष्यों में संवेदना जगाने का कार्य भी किया गया है।समाज को उसका यथार्थ दिखाने का प्रयास भी किया गया है।लघुकविताकार अपनी लघुकविताओं के माध्यम से व्यक्ति और समाज को कुछ सद्परामर्श भी देता है।वह कहता है कि मुसीबतें मनुष्य को सबक सिखाने के लिए आतीं हैं।मनुष्य को मुसीबतें देखकर घबराना नहीं चाहिये।वह किसी ग़रीब के आँसुओं का मज़ाक न उड़ाने की सलाह देता है। वह कहता है : - " मत करना मज़ाक/ किसी ग़रीब के/ आँसुओं का/ क्योंकि ग़रीब के आँसू/ जब बन जाते हैं सैलाब/ तो ले जाते हैं बहाकर/ समाज के ठेकेदारों द्वारा/ बनाई गई खोखली/ रूढ़ियों की ईमारतों को/ सूखे पत्तों की तरह।"
( पृष्ठ 60 ) लघुकवितायें - " आजकल " , " ग़रीब के आँसू " , " भावनाओं का समंदर ", " लौट जाना चाहता हूँ " , " ग़रीबी की दलदल " , " नज़र का ईलाज " , " अपनापन " , " तुम देख लेना " , " क़लम के ब्यान " और " किरन " - लघुकविता-संग्रह की श्रेष्ठ लघुकवितायें हैं।मुक्तछंदता, दस पंक्तियाँ, सकारात्मकता,
भावना का प्राधान्य, कल्पना की प्रचुरता आदि - लघुकविता के अनिवार्य तत्व हैं।लघुकविता-संग्रह " भावनाओं का समंदर " की अधिकतर लघुकवितायें दस पंक्तियों में हैं।कुछ एक लघुकवितायें दस पंक्तियों में तो हैं किंतु वे दस पंक्तियाँ जबरदस्ती पूरी की गईं हैं।जबकि , उस पंक्ति के अनुसार संख्या ग्यारह बनती है।उदाहरण के लिये पृष्ठ 84 पर मुद्रित " इन्सान " - लघुकविता की ये पंक्तियाँ देखिये : - " तो असम्भव भी, हो जाता है सम्भव।" ये दो पंक्तियाँ बनतीं हैं, एक नहीं। लघुकविताओं में " ये " शब्द का एक वचन के रूप में प्रयोग किया गया है, जबकि यह बहुवचन है।" वह " शब्द के स्थान पर " वो " शब्द का प्रयोग किया गया है, जो उचित नहीं है।" लघुकविता " शौहरत " अपने भाव व्यक्त कर पाने में असमर्थ रही। इस लघुकविता में सम्प्रेषणीयता का अभाव है।उर्दू के शब्दों का प्रयोग करते समय नुक्तों का प्रयोग नहीं किया गया है।उदाहरणार्थ " ख़ाली-ख़ाली "
इन छोटी-मोटी कमियों के अतिरिक्त " भावनाओं का समंदर " की लघुकविताओं की भाषा सरल है। उर्दू के आम प्रचलित शब्दों का सार्थक प्रयोग किया गया है।भाषा भावों का वहन करती है।लघुकविताओं में भावनायें उमड़तीं देखीं जा सकतीं हैं।कल्पना के भी कई स्थानों पर दर्शन होते हैं।अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।"मानवीकरण ", " समुच्चय " , " रूपक " , " उपमा " और " पुनरुक्तिप्रकाश " - अलंकार लघुकविताओं में अपनी छटा बिखेरते दिखाई देते हैं।एक लघुकविता " इन्सान " में ' दशरथ माझी ' का असम्भव से लगने वाले कार्य को भी कर डालने वाले महामानव के प्रतीक के रूप में प्रयोग हुआ है। लघुकविताओं की शैली प्रश्नात्मक, संवादात्मक और आत्मकथात्मक है।कईं लघुकविताओं में तुकबंदी भी दिखाई देती है। जैसे लघुकविता " मैं जनता हूँ " ( पृष्ठ 75 ) - में ' शातिर ' और ' ख़ातिर " ।
कुल मिलाकर दिलबाग ' अकेला ' - रचित लघुकविता-संग्रह " भावनाओं का समंदर " की कवितायें भावनाओं का उमड़ता हुआ सागर लिये हुए है। ये लघुकवितायें पाठकों को बांधने की क्षमता रखतीं हैं।लघुकविताओं की भाषा सरल होने के कारण इन लघुकविताओं को पढ़ने में अरुचि नहीं होती।संग्रह की अधिकतर लघुकवितायें पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम हैं। साहित्य-जगत् में इस नई काव्य-विधा में लिखी गईं लघुकविताओं का स्वागत होगा। लघुकविताकार को प्रोत्साहन मिलेगा। इसी आशा के साथ,
तेजिंद्र सुपुत्र श्री जगदीश राम,
मकान नम्बर 882,
सेक्टर 19 भाग 2,
हुडा कैथल ( हरियाणा )
पिन - 136027
मोबाइल नम्बर 94166 58454